टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण क्या है?
टाइप -1 डायबिटीज के संकेत काफी गंभीर होते हैं और आमतौर पर यह कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ्तों में अचानक प्रकट होने लगते हैं। जिसमें कुछ इस प्रकार के लक्षण शामिल है –
- अत्यधिक भूख लगना – टाइप -1 डायबिटीज में इंसुलिन की कमी या प्रतिरोध की वजह से खाया हुआ खाना हमारे शरीर में एनर्जी में बदल नहीं पाता है जिस वजह से हमे अक्सर भूखा महसूस करते हैं।
- अधिक प्यास लगना – पेशाब अधिक आने के कारण, शरीर में पानी की कमी से प्यास अधिक लगती है जिससे रोगी बार-बार प्यासा महसूस करता है और अधिक प्यास लगना टाइप -1 डायबिटीज के लक्षण है।
- बार-बार पेशाब का आना – किडनी रक्त में मौजूद अधिक शुगर को फिल्टर करने में सक्षम नहीं हो पाती है, इसलिए इसे अतिरिक्त शुगर निकलने का एक मात्र तरीका यूरिन का रास्ता ही है।
- धुंधली द्दष्टी – शरीर में तरल पदार्थों के बदलावों का असर आंखों पर भी पड़ता है। तब टाइप -1 डायबिटीज के रोगियों की आखों में सूजन आने लगती है और उन्हें धुंधला दिखाई देने लगता है।
- घाव का ठीक से न भरना – इसमें किसी तरह की बाधा आने पर शरीर बैक्टीरिया और अन्य रोगजनक रोगाणुओं से लड़ने में सक्षम नहीं हो पता है और तब ऐसे में घाव ठीक होने की गति धीमी हो जाती है।
इसके अलावा कभी-कभी टाइप -1 डायबिटीज के पहले लक्षण, जीवन के लिए खतरनाक स्थिति जिसे डायबिटीज केटोएसिडोसिस (डीकेए) – diabetic ketoacidosis (DKA) कहा जाता है और उसके संकेत कुछ इस प्रकार है –
- सांस जिसमें बदबू आती है
- सूखी या दमकती स्किन
- उल्टी और मतली
- पेट दर्द
- सांस लेने में तकलीफ
- ध्यान देने में परेशानी या उलझन महसूस होना
ये समस्या काफी गंभीर है अगर आप या आपके बच्चे में डीकेए के लक्षण नजर आ रहे हैं तो तुंरत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
टाइप 1 डायबिटीज के क्या-क्या कारण हो सकते हैं?
टाइप – 1 डायबिटीज में सही कारणों का पता इतनी जल्दी नजर नहीं आते हैं। हम ऐसा भी नहीं कह सकते है कि, इस समूह के लोगों को इस प्रकार के डायबिटीज का खतरा अधिक है, लेकिन कुछ शोध के मुताबिक, जिन लोगों के शरीर में ऑटोएंटीबॉड़ीज होती है। उन लोगों में टाइप -1 मधुमेह होने का खतरा अधिक बढ़ जाता है। एक शोधकर्ता के अनुसार, विभिन्न रिसर्च से यह पता चला है कि, अनुवांशिकता और पर्यावरण टाइप -1 होने की संभावना एक निश्चित सीमा तक बढ़ा देते हैं।
टाइप – 1 डायबिटीज के निदान के लिए कुछ प्रकार के टेस्ट करवाएं –
- ग्लूकोज टेस्टिंग – दिन के किसी विशेष समय पर आपके शरीर से ब्लड सेम्पल लेकर उसमें ग्लूकोज के लेवल की जांच की जाती है। 200 mg/dl उससे अधिक की रीडिंग डायबिटीज का संकेत हो सकते है।
- पोस्ट प्रैंडिअल प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट – अगर ब्लड टेस्ट में ब्लड ग्लूकोज लेवल की रीडिंग बहुत हाई आती है, जो आपको इस तरह का टेस्ट कराने के लिए कहा जा सकता है। इस टेस्ट में आपके शरीर के द्वारा ग्लूकोज को बर्दाशत करने की क्षमता की जांच की जाती है। ब्लड टेस्ट के 2 घंटे बाद इस टेस्ट के लिए आपको लगभग 75 ग्राम ग्लूकोज लेने की सलाह दी जा सकती है। 200 mg/dl से अधिक की रीडिंग से डायबिटीज होने की पृष्टि की जाती है।
- ए1सी टेस्ट (A1C test) – इन दोनों के अलावा डॉक्टर आपको ए1सी टेस्ट करने के लिए भी कह सकते हैं। जिसमें पिछले 3 महीनों का एवरेज ब्लड ग्लूकोज के स्तर के द्वारा चेक किया जाता है। इस जांच की रीडिंग्स कुछ इस प्रकार है –
- सामान्य – 5.7% से कम
- प्री-डायबिटीज – इसमें ए1सी (A1C से 5.7% से 6.4% तक हो सकती है।
- डायबिटीज – 6.5% या उससे अधिक
टाइप 1 डायबिटीज के सटीक उपचार क्या है?
टाइप -1 डायबिटीज का इलाज करते समय रोगियों को समय-समय पर इंसुलिन देना होता है, क्योंकि इस स्थिति में शरीर में इंसुलिन बिल्कुल नहीं बनता है। साथ ही टाइप -1 डायबिटीज की बीमारी वंशानुगत होती है, इसलिए आपको अपनी लाइफस्टाइल में बदलावों के साथ लगातार प्रयास करने की जरूरत है।
टाइप 1 डायबिटीज से किस तरह बचाव किया जा सकता है?
टाइप -1 डायबिटीज का अभी तक ना कोई इलाज और ना ही बचाव किया जा सकता है। लेकिन इसे डॉक्टर की मदद और लाइफस्टाइस में बदलाव करके इसे मैनेज किया जा सकता है जैसे –
- किडनी, आंख और लिवर की देखभाल करनाॉ
- इंसुलिन इंजेक्शन लेना
- ब्लड शुगर को नियमित रूप से चेक करना
- योगा व एक्सरसाइज करें
- स्वस्थ खानपान
- कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल रखना
- स्ट्रेस ना लें
टाइप 1 डायबिटीज के लिए जरूरी टेस्ट कौन कौन से है?
जांच के समय डॉक्टर आपसे लक्षणों व आपके स्वास्थ्य संबंधी पिछली स्थिति के बारे में पूछते हैं और इसके अलावा आपके खून में शुगर लेवल की जांच करने के लिए डॉक्टर कुछ टेस्ट भी कर सकते हैं, जो कुछ इस प्रकार है –
- ब्लड टेस्ट – किसी व्यक्ति को डायबिटीज है या नहीं पता लगाने के लिए उसके रक्त में शुगर के स्तर की जांच की जाती है। यह टेस्ट दो बार किया जाता है एक बार खाना – खाने से पहले और दूसरी खाना खाने के बाद। अस्पताल में रक्त के कुछ सेंपल लिए जा सकते हैं और उन सेंपल की जांच के लिए जा सकते हैं और फिर जांच के लिए उन्हें लेबोरेटरी में भेजा जा सकता है।
- HBA1C टेस्ट – यह पता लगाने के लिए कहीं काफी लंबे समय से ब्लड शुगर का लेवल अधिक तो नहीं हो रहा, उसके लिए एचबीए1सी लेवल की जांच की जाती है। इस टेस्ट की मदद से यह पता लगाया जाता है कि पिछले दो या तीन महीनों में आपका शुगर औसतन कितना अधिक रहा है।
इसके अलावा अगर डायबिटीज के टाइप का पता नहीं है तो इस बारे में पता लगाने के लिए आपके डॉक्टर इन निम्न में से कोई एक या अधिक टेस्ट भी कर सकते हैं –
- कीटोन टेस्ट
- जीएडी ऑटो एंटीबॉडीज टेस्ट
- सी-पेपाइड टेस्ट
टाइप 1 डायबिटीज के दौरान क्या करे और क्या न करें
- किसी भी रोगी को अगर सिर्फ शुगर की समस्या है तो उसके इलाज में उन लोगों के इलाज से अंतर होता है, जिन्हें शुगर या डायबिटीज के साथ ही दूसरी बीमारियां भी हों।
- एक बार शुगर हो जाने के बाद आप इसे केवल नियंत्रित कर सकते हैं। इससे मुक्ति नहीं पा सकते हैं, इसलिए बेहतर है कि यह बीमारी होने से पहले जितना भी सजग रह सकते हो तो रहो।
- डायबिटीज टाइप – 1 का इलाज करते समय रोगी को समय-समय पर इंसुलिन देना होता है, क्योंकि इस स्थिति में शरीर में इंसुलिन बिल्कुल नहीं बनता है।
- टाइप – 1 डायबिटीज की बीमारी वंशानुगत होती है, इसलिए इस पर जीवनशैली में बदलावों के साथ कंट्रोल करने का प्रयास किया जा सकता है।
- टाइप – 2 डायबिटीज में जरूरत होने पर ही इंसुलिन की डोज दी जाती है। नहीं तो ऐसी दवाओं से इलाज किया जाता है, जो इंसुलिन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए पैंक्रियाज को प्रोत्साहित करें।
- इसके अलावा अच्छी लाइफस्टाइल अपनाने पर जोर दिया जाता है। तनाव को कम करने के लिए शारीरिक गतिविधियों और ध्यान की मदद ली जाती है।
टाइप 1 डायबिटीज के स्पेशलिस्ट
एंडोक्राइनॉलोजिस्ट – एंडोक्राइनॉलोजी हार्मोन से जुड़ी बीमारियों का एक फिल्ड है और वहीं एंडोक्राइनोलॉजिस्ट इस फिल्ड से जुड़ी बीमारी का पता लगाने के साथ-साथ हार्मोन से जुड़ी समस्याओं और बीमारियों को ठीक करता है।
न्यूट्रिशनिस्ट – इसमें आहार विशेषज्ञ और पोषण विशेषज्ञ ऐसे पेशेवर हैं जो अपने पेशेंट और क्लाइंट की पोषण और स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करते हैं। उनकी भूमिका सही पोषण सामग्री की तलाश करने और हल्दे खाने की आदतों को अपनाने में उनकी सहायता करते हैं।
पीडियाट्रिशन – बालचिकित्सा या बालरोग विज्ञान की वह शाखा है जो शिशुओं, बालों और किशोरों के रोगों एवं उनकी चिकित्सा से जुड़ी है। इस आयु की दृष्टि से इस श्रेणी में नवजान शिशु से लेकर 12 से 21 वर्ष के किशोर तक आ जाते हैं। इसके अलावा इस श्रेणी के उम्र की उपरी सीमा एक देश से दूसरे देश में अलग-अलग है।
टाइप 1 डायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज में अंतर
सभी जानते है कि, डायबिटीज दो तरह की होती है पहली टाइप – 1 और दूसरी टाइप – 2, इनमें टाइप – 1 डायबिटीज वह है जो हमें अनुवांशिकतौर पर होती है यानी कि जब किसी के परिवार में मम्मी-पापा, दादा-दादी में से किसी को भी शुगर की बीमारी रही हो तो ऐसे व्यक्ति में इस बीमारी की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।
अगर किसी व्यक्ति को वंशानुगत कारणों से डायबिटीज होती है तो इसे टाइप – 1 डायबिटीज कहा जाता है। लेकिन कुछ लोगों में गलत लाइफस्टाइल और खान-पान की वजह की वजह से यह बीमारी अधिक बढ़ जाती है तो इस स्थिति को टाइप – 2 डायबिटीज कहते हैं।
निष्कर्ष
AgVa की वेबसाइट पर हमने आपको टाइप – 1 डायबिटीज से जुड़ी हर एक छोटी-बड़ी जानकारी देने का प्रयास किया है। आप इसके बारे में पढ़कर अपना तुरंत अपना इलाज शुरू कर सकते हैं। इसके साथ ही अपना परहेज का भी ध्यान रखें। अगर आप डायबिटीज से जुड़ी कुछ और जानकारी पाना चाहते हैं तो हमें कमेंट लिख कर बता सकते हैं। साथ ही आप हमारे यूट्यूब चैनल TV Health पर भी डायबिटीज से जुड़ी जानकारी ले सकते हैं।