वैरिकोसील क्या है? (What is Varicocele in Hindi?)
Varicocele in Hindi – वैरिकोसील टेस्टिकल (अंडकोष) और स्क्रॉटम (अंडकोष की थैली) की सूजी हुई नसों को कहते हैं। सूजी हुई नसों में दर्द की समस्या हो सकती है और इसका बुरा प्रभाव पुरुषों के प्रजन्न पर भी पड़ता है। हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार, 15 से 35 वर्ष के लोग इसका अधिक शिकार होते हैं। वैरिकोस नसों में वॉल्व मौजूद होते हैं, ये ब्लड को टेस्टिकल और स्क्रॉटम से हार्ट की और पहुंचाने में सहायता करता है, लेकिन वॉल्व के काम नहीं करने पर ब्लड एक ही जगह रह जाता है, जिस वजह से स्क्रॉटम और आस-पास की थैली में सूजन शुरू हो जाती है। इस परेशानी या बीमारी को वैरिकोसील (What is Varicocele in Hindi?) कहते हैं।
वैरिकोसील कैसे होता है?
ये आमतौर पर 15 वर्ष से 40 की आयु के बीच पुरुष वेरीकोसील (varicocele meaning in hindi) का शिकार बनते हैं। वेरीकोज नसों में आमतौर पर वॉल्व होते हैं जो रक्त को टेस्टिकल्स तथा स्क्रोटम से दिल की ओर ले जाते हैं। जब ये वॉल्व काम करना बंद करते हैं, तब खून एक ही स्थान पर जमा हो जाते हैं जिससे स्क्रोटम में मौजूद टेस्टिकल्स के आस-पास की नसें फूल जाती है और वेरीकोसील की समस्या पैदा हो जाती है। इस समस्या से ग्रस्त लोगों में कुछ समय बाद वीर्य का बनना कम हो जाता है और इसकी गुणवत्ता में भी गिरावट आती है।
साथ ही कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि, वेरिकोसील का इलाज (Varicocele treatment in hindi ) होने के बाद 90 से 100 प्रतिशत तक रोगी को दर्द से राहत मिलती है और 50 से 70 प्रतिशत तक रोगियों में वीर्य बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
टेस्टिस के दो अहम काम
- पहला – टेस्टिस पुरुषों की बॉडी में टेस्टेस्टेरोन बनाते हैं। ये मेल हार्मोन है, जिसका निर्माण टेस्टिस खुद ब खुद ही करते हैं
- दूसरा – स्पर्म (वीर्य) का उत्पादन करते हैं।
स्पर्म प्रोडक्शन होता है कम
डॉक्टर बताते हैं कि टेस्टिस जब सही तरीके से काम नहीं कर पाते हैं तो इसका असर स्पर्म प्रोडक्शन पर पड़ता है। स्पर्म की उत्पादकता कम हो जाती है। इस वजह से टेस्टेस्टेरॉन हार्मोन का प्रोडक्शन भी कम होता है। ये प्रजन्न व इंफर्टिलिटी का सबसे बड़ा कारण बनता है। स्पर्म कम होने से इंफर्टिलिटी की समस्या होती है और टेस्टेस्टेरॉन कम होने के कारण हमारी बॉडी में कई प्रकार के बदलाव आते हैं जैसे –
- सेक्सुअल एक्टिविटी करने की इच्छा में भारी कमी
- पुरुषों का चिड़चिड़ा होना
- टेस्टोस्टेरॉन की वजह से शरीर में कई अन्य बदलाव भी आते हैं
- पुरुषों में स्ट्रेस
वैरिकोसील की समस्या का कारण (cause of varicocele problem in hindi)
- ये अधिकतर वंशानुगत होता है और परिवारों में चलता है
- लंबे समय से खड़े होने वाले काम करते रहने से
- डीप वेन थ्रोम्बोसिस
- एक से अधिक बार गर्भधारण
- पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक प्रभावित होती हैं
वैरिकोसील के लक्षण (Symptoms of Varicocele in hindi)
शुरूआत में वैरीकोसील के लक्षणों (varicocele Symptoms) का पता नहीं लग पाता है, क्योंकि लोग इसके लक्षण को छोटी-मोटी समस्या समझकर छोड़ देते हैं। डॉक्टर का मानना है कि वैरीकोसेल (varicocele meaning in hindi) होने पर स्क्रोटम का आकार बढ़ जाता है। आमतौर पर इसमें दर्द नहीं होता है, लेकिन कभी-कभी हल्का दर्द भी हो सकता है। यदि इसके लक्षणों की शुरूआत में ही पता चल जाए तो कुछ दवाओं, योग, व्यायाम या घरेलू नूस्खों की सहायता से बहुत कम समय में इसे परमानेंटली ठीक किया जा सकता है।
इसके अलावा हम आपको वैरीकोसेल के कुछ खास लक्षणों के बारे में बता रहे हैं जिनकी सहायता से आप या आपके डॉक्टर को ये समझने में मदद मिलेगी की आप इस बीमारी से पीड़ित है या नहीं। फिर डॉक्टर स्कट्रोम की जांच के बाद इस बात की पुष्टि करते हैं। इसके लक्षणों में स्क्रोटम की मुड़ी हुई नसों का बाहर साफ तौर पर दिखाई देना, स्क्रोटम की नसों का मुड़ना या एक जगह जमा होना, गांठ की वजह से दर्द नहीं होना, अंडकोष की एक तरह गांठ होना, स्क्रोटम में सूजन होना, स्क्रोटम में दर्द होना, गर्मी में दर्द का बढ़ जाना, गर्मी में दर्द का बढ़ जाना, स्क्रोटम का आकार सामान्य से बड़ा होना आदि शामिल है।
वेरीकोसील बीमारी का पता कैसे लगाएं?
डॉक्टर बताते हैं कि इस बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर मरीज को कुछ खास जांच की सलाह देते हैं, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर बीमारी का पता किया जाता है, जो कुछ इस प्रकार की है –
स्क्रॉटम का अल्ट्रासाउंड बनाने की सलाह दी जाती है – अल्ट्रासाउंड में बहुत क्लीयर हो जाता है कि मरीज को वैरिकोसील है या नहीं। अल्ट्रासाउंड में पेनपेनिफाम प्लेक्सर की वेन्स बढ़ी हुई है तो वो अल्ट्रासाउंड में साफ नजर आ जाएगा।
दवा और सर्जरी से इलाज
अक्सर इसमें डॉक्टर बताते हैं कि तमाम लक्षणों का पता लगाने के बाद इस बीमारी का ट्रीटमेंट एक्सपर्ट सर्जन ऑपरेशन करते हैं। वहीं कुछ मामलों में दवा देकर वैरिकोसील का इलाज (Varicocele treatment) किया जाता है, लेकिन सबसे जरूरी है कि बिना डॉक्टर की सलाह लिए न तो लोगों को दवा का सेवन करना चाहिए न ही इलाज। अगर आप भी इन्हीं समस्याओं को झेल रहे हैं तो आपको डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि बीमारी का जल्द से जल्द ट्रीटमेंट किया जा सके। यदि इसका इलाज न किया जाए तो पार्टनर के साथ शारीरिक संबंध बनाने के बावजूद भी स्पर्म काउंट में कमी होने की वजह गर्भधारण करने में परेशानी होती है।
वेरीकोसील की बीमारी (Varicocele) असल मे होती क्या है?
हर बीमारी की तरह वैरीकोसेल के भी कुछ खास कारण से होते हैं। नसों में वॉल्व मौजूद होता है जिनका काम रक्त को बड़ी नसों की ओर एक दिशा में ले जाना होता है, लेकिन कुछ समस्या की वजह से ये वॉल्व ठीक तरह से काम नहीं करते हैं। जिसकी वजह से रक्त दूसरी जगह न जाकर एक ही जगह जमा हो जाता है। वैरीकोसेल के वॉल्व में स्पर्मेटिक कॉर्ड्स होते हैं जिनका काम ब्लड फ्लो को संतुलित बनाए रखना होता है, लेकिन जब ये अपना काम करना बंद कर देती है तो वैरीकोसील की समस्या (varicocele meaning in hindi) शुरू हो जाती है। ये समस्याएं खासकर खड़े होकर पानी पीने, स्क्रोटम में चोट लगने या घाव बनने, शुक्राणु कॉर्ड में रूकावट होने, बिना प्रोटेक्टिव गियर के व्यायाम करने और एपिडिडीमाइटिस जैसे इंफेक्शन से पीड़ित होने की वजह से होती है।
किस उम्र के पुरुष वेरीकोसील का शिकार बनते हैं ?
रीकोसील टेस्टिकल और स्क्रोटम की वेरीकोन नसें हैं जिनमें सूजन आ जाना कभी भयानक दर्द और कभी संतानहीनता का कारण बन जाता है। ये आमतौर पर 15 वर्ष से 35 वर्ष की आयु के बीच पुरुष इसका शिकार बनते हैं।
साथ ही वेरीकोज नसों में वॉल्व होते हैं जो रक्त को अंडकोश तथा स्क्रोटम से दिल की ओर ले जाते है। जब ये वॉल्व काम नहीं करते है तब खून एक ही स्थान पर जमा हो जाता है जिससे स्क्रोटम में मौजूद अण्डकोश के आस-पास की नसें फूल जाती है और वेरीकोसील की समस्या पैदा हो जाती है। इस समस्याा से ग्रस्त लोगों में वीर्य बनना बंद हो जाता है। वहीं कुछ अध्य्ययनों से पता चला है कि वेरीकोसील का इलाज होने के बाद 50 से 70 प्रतिशत तक मरीजों में वीर्य बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
लेकिन इसमें मजे की बात है कि कई बार वेरीकोसील (varicocele meaning in hindi) से रोगी को जरा सी भी तकलीफ नहीं होती है जब कि कई बार इतना भयानक दर्द होती है कि मरीज खड़ा भी नहीं रह सकता है और कई बार भारी वजन वाला कोई सामान उठाने पर इसके लक्षण उभर आते हैं।
क्या होते है वेरीकोसील के लक्षण ?
- लंबे समय तक खड़े रहने पर या अधिक गतिविधि करने पर अंडकोष में दर्द महसूस होना।
- अंडकोष के अंदर, नसों का गुच्छा महसूस होना।
- प्रभावित अंडकोष में सूजन या भारीपन महसूस होना।
- प्रजन्न संबंधी समस्या होना।
वेरीकोसील उपचार के तरीके (Varicocele treatment methods in hindi)
बहुत से अस्पतालों में इसका इलाज केवल पुरानी विदी यानी ओपन एवं माइक्रोस्कोपिक सर्जरी से ही किया जाता है। वेरीकोसील (varicocele meaning in hindi) की सर्जरी के अंतर्गत यूरोलॉजिस्ट चीरा लगाकर खराब धमनियों को बांध देते हैं , क्योंकि सही तरह से काम रही धमनियों के माध्यम से रक्त ह्रदय की ओर वापस लौटे।
अग्रिम और आधुनिक विधि से वेरीकोसील का इलाज
सर्जरी के बिना वेरीकोसील (varicocele meaning in hindi) की समस्या से निजात दिलाने के क्रम में एंबोलाइजेशन एक बहुत ही कामयाब और असरदार विदी साबित हुई है। बता दें कि, इसमें मरीज को कुछ घंटों तक ही डॉक्टर की निगरानी में रखना पड़ता है।
एम्बोलाइजेशन (Embolization) के कई फायदे
किसी भी हानिकारक बेहोश करने वाली दवाओं की आवश्यकता नहीं पड़ती है। रोगी पूरी तरह से होश में रहता है कंप्यूटर स्क्रीन पर पूरी प्रक्रिया देख सकते हैं। एम्बोलाइजेशन प्रक्रिया के दौरान कोई दर्द नहीं होता है और कोई कट या निशान नहीं आता है।